दिल्ली

कुंभ में कहां से आते हैं नागा साधु, कैसे बनते हैं और क्या है इनकी परंपरा, यहाँ जानिए सबकुछ

सनातन धर्म में साधू-संतों का काफी महत्व होता है। साधू-संत भौतिक सुखों का त्याग कर सत्य व धर्म के मार्ग पर निकल जाते हैं। इसके साथ ही उनकी वेशभूषा और खान-पान आम लोगों से बिल्कुल अलग होती है। उनको ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है।

साधू-संत को ईश्वर के सबसे निकट माना जाता है। संन्यासी अपने पूरे सांसारिक जीवन का त्याग कर देता है और अपना समय भगवान का नाम स्मरण करने में लगाता है। साधू-संतों में नागा साधुओं की चर्चा जरूर होती है। सबसे खास बात यह है कि नागा साधू कपड़े नहीं धारण करते हैं। वह कड़ाकी ठंड में भी नग्न अवस्था में रहते हैं। वह शरीर पर धुनी या भस्म लगाकर घूमते हैं। नागा का मतलब होता है नग्न। नागा संन्यासी पूरा जीवन नग्न अवस्था में ही रहते हैं।नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया बहुत लंबी और कठिन मानी जाती है। अखाड़ों द्वारा नागा संन्यासी बनाया जाता है। हर अखाडे़ की अपनी मान्यता और पंरपरा होती है और उसी के अनुसार उनको दीक्षा दी जाती है। कई अखाड़ों में नागा साधुओं को भुट्टो के नाम से भी बुलाया जाता है। बताया जाता है कि किसी भी इंसान को नागा साधू बनने में 12 साल का लंबा समय लगता है। नागा साधू बनने के बाद वह गांव या शहर की भीड़भाड़ भरी जिंदगी को त्याग देते हैं और रहने के लिए पहाड़ों पर जंगलों में चले जाते हैं। उनका ठिकाना उस जगह पर होता है, जहां कोई भी न आता जाता हो।

नागा साधू बनने की प्रक्रिया की शुरुआत में सबसे पहले ब्रह्मचर्य की शिक्षा लेनी होती है। इसमें सफलता प्राप्त करने के बाद महापुरुष दीक्षा दी जाती है। इसके बाद यज्ञोपवीत होता है। इस प्रकिया को पूरी करने के बाद वह अपना और अपने परिवार का पिंडदान करते हैं जिसे बिजवान कहा जाता हैवह 17 पिंडदान करते हैं जिसमें 16 अपने परिजनों का और 17 वां खुद का पिंडदान होता है। अपना पिंडदान करने के बाद वह अपने आप को मृत सामान घोषित करते हैं जिसके बाद उनके पूर्व जन्म समाप्त माना जाता है। पिंडदान के बाद वह जनेऊ, गोत्र समेत उनके पूर्व जन्म की सारी निशानियां मिटा दी जाती हैं।नागा साधुओं को एक दिन में सिर्फ सात घरों से भिक्षा मांगने की इजाजत होती है। अगर उनको इन घरों में भिक्षा नहीं मिलती है, तो उनको भूखा ही रहना पड़ता है। नागा संन्यासी दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं। नागा साधू हमेशा नग्न अवस्था में रहते हैं और युद्ध कला में पारंगत होते हैं। यह अलग-अलग अखाड़ों में रहते हैं। जुना अखाड़े में सबसे ज्यादा नागा संन्यासी रहते हैं। आदिगुरु शंकराचार्य ने अखाड़े में नागा साधुओं के रहने की परंपरा की शुरुआत की थी।

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