गुजरात :- गुजरात के पोरबंदर की एक स्थानीय अदालत ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 1997 के हिरासत में प्रताड़ना मामले में बरी कर दिया है। अदालत ने यह फैसला देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असमर्थ रहा कि भट्ट ने अपराध किया था। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश पंड्या ने मामले में सबूतों की कमी को आधार बनाते हुए भट्ट को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। यह मामला एक व्यक्ति, नरन जादव, द्वारा यह आरोप लगाए जाने के बाद दर्ज हुआ था कि भट्ट ने उसे बयान देने के लिए प्रताड़ित किया था।
भट्ट का विवादों से गहरा नाता
पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट का नाम कई विवादों से जुड़ा रहा है। वह पहले से ही 1990 के हिरासत में मौत के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। इसके अतिरिक्त, 1996 में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स प्लांट करने के आरोप में उन्हें 20 साल की सजा दी गई थी। इसके अलावा, उनका नाम 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में भी आया था, जिसमें उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आरोप लगाए थे, लेकिन विशेष जांच दल ने उन आरोपों को खारिज कर दिया था।
1997 का हिरासत में प्रताड़ना मामला
1997 में यह मामला उस समय सामने आया जब एक आरोपी, नरन जादव, ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उसे बयान देने के लिए प्रताड़ित किया। जादव का कहना था कि पुलिस ने उसे भट्ट के घर पर ले जाकर बिजली के झटके दिए और इस दौरान उनके बेटे को भी प्रताड़ित किया गया। इस मामले में शिकायत के बाद पुलिस ने जांच शुरू की थी।
अदालत का निर्णय
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि प्रताड़ना के आरोप सही थे। इसके अलावा, यह भी महत्वपूर्ण था कि उस समय संजीव भट्ट सार्वजनिक सेवा में थे, और अभियोजन के लिए आवश्यक मंजूरी नहीं ली गई थी। अदालत ने इसे एक गंभीर चूक मानते हुए मामले को संदेह के आधार पर खारिज कर दिया।
संजीव भट्ट के खिलाफ अन्य मामले
संजीव भट्ट का नाम कई अन्य विवादों में भी शामिल रहा है। 1990 के दंगों में हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया था। इसके अलावा, 1996 में ड्रग्स प्लांट करने और 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े आरोपों में भी उनका नाम था। 2015 में उन्हें सरकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।