अधीक्षक-कर्मचारी रहते हैं नदारत चपरासियों के भरोसे आश्रम के छात्र
बिलासपुर जिले के प्री मैट्रिक अनूसूचित जनजाति और अनूसूचित जाति शासकीय बालक छात्रावास भटचौर में आश्रमों में रहने वाले छात्रावासी बच्चे बेबसी का जीवन जीने को मजबूर हैं। आलम यह है कि इनकी सुरक्षा के लिए अधीक्षक की नियुक्ति की जाती है, लेकिन अधीक्षक ही गायब हो जाएं, तो इन बच्चों का भविष्य कैसे सुरक्षित होगा। यह अपने आप में ही सवालिया निशान है। पर वहां नियुक्त होने वाले अधीक्षक और कर्मचारी इस कदर लापरवाह हैं कि वे हॉस्टल में उन बच्चों के साथ न रहकर अपनी मनमानी कर रहे हैं। जिन्हें नियंत्रित करने वाला कोई दिखाई नहीं पड़ता। मस्तुरी ब्लॉक के भटचौरा के शासकीय बालक आश्रम में बच्चों को न तो अच्छा खाने के लिए सब्जी मिल मिल रहा है और न ही उनकी आवासीय व्यवस्था ठीकठाक है। मजे की बात तो यह है कि यहां पदस्थ अधीक्षक तरुण केशरवानी,आलोक शर्मा छोटे छोटे बच्चों को चपरासियों के हवाले कर के अपनी मनमानी करते है । माह में कुछ दिन पहुंचकर रजिस्टर में दस्तखत कर अपनी कर्तव्य पूरा कर लेते हैं। साथ ही माह भर की तनख्वाह भी उठा लेते हैं। वहां रहकर पढऩे वाले बच्चों ने बताया कि उन्हें दाल-सब्जी सब्जी में सिर्फ सरकारी बड़ी और चने की ही सब्जी मिलती है । विद्यार्थियों का कहना था कि न तो उन्हें नहाने के लिए साबुन दिया जाता है और न ही लगाने के लिए तेल। अधीक्षक महीने में कुछ दिन ही रहते हैं। जिससे बच्चों की देख-रेख ठीक ढंग से नहीं हो पाती। उन्होंने बताया 30अनुसूचित जनजाति और 20 अनुसूचित जाति के लिए सीट है जो की छात्रावास में केवल सिर्फ अनूसूचित जनजाति के 12,13 बच्चे ही आश्रम में रहते हैं। तब यह स्थिति है। अगर पूरे 50 बच्चे आश्रम में रहते, तो उन्हें कुछ भी नहीं मिलता। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में दुर्गम अंचलो के आश्रम छात्रावास में बच्चों की किस तरह ख्याल रखा जा रहा है।
भविष्य से खिलवाड़ – आश्रमों में बेबसी का जीवन जीने को मजबूर विद्यार्थी, असुविधाओं का अंबार
छात्रों ने बताया कि अक्सर भटचौरा के अधीक्षक ड्यूटी में अनुपस्थित रहते हैं और माह में कुछ दिन आकर हस्ताक्षर कर लेते हैं। ऐसी स्थिति अधिकांश छात्रावास, आश्रमों में है। यहां तक कि छात्रावास के बच्चो को गंदे और फटे हुए गद्दे,बेडशीट दिए हुए है जिससे बच्चो को खुजली हो रहा है। बच्चो ने बताया की छात्रावास में बच्चों को कुछ भी मेडिसिन नही मिलता। छात्रावास के टॉयलेट के दरवाजे पूरी तरीके से टूटे हुए है बिना दरवाजे के बच्चे सौच करने को मजबूर है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में कई बार शिकायत की गई। लेकिन व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुई। जानकारी के लिए अनुसूचित जनजाति के अधीक्षक तरुण केशरवानी, और अनुसूचित जाति के अधीक्षक आलोक शर्मा से संपर्क किया गया तो दोनो ही नही थे। अगर ऐसा स्थिति है तो बच्चो को अगर कभी इमरजेंसी वाली कोई बात हो जाए तो इसका जिम्मेदार कोन होगा।