बिलासपुर ब्यूरो चीफ विवेक टंडन/मस्तूरी@इंडिया09 न्यूज:–
छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा..
छत्तीसगढ़ अंचल के संस्कृति अन्नदान का पारम्परिक लोक उत्सव छेर छेरा पुन्नी छत्तीसगढ़ में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है।
इस दिन युवक-युवती व बच्चे समेत बुजुर्ग भी छेरछेरा मागने घर-घर जाते हैं। छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्योहार का अलग ही महत्व है। सदियों से मनाया जाने वाला यह पारंपरिक लोक पर्व अलौकिक है, क्योंकि इस दिन रुपये पैसे नहीं बल्कि अन्न का दान करते हैं। धन की पवित्रता के लिए मनाया जाता है त्योहार।
लोगों की अवधारणा है कि दान करने से धन की शुद्धि होती है। छेरछेरा तिहार मुख्यतः छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला पर्व है, क्योंकि धान का कटोरा कहलाने वाला भारत का एक मात्र प्रदेश छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान प्रदेश है। यहां पर ज्यादातर लोग किसान वर्ग के निवास करते हैं। कृषि ही जीवकोपार्जन का मुख्य साधन है। यही वजह है कि कृषि आधारित जीवकोपार्जन व जीवन शैली आस्था और विश्वास ही अन्न दान करने का पर्व मनाने की प्रेरणा देते हैं। छेरछेरा पुन्नी अर्थात पौष माह की शुक्ल पक्ष 15वीं तिथि को पौष पुन्नी अर्थात छेरछेरा त्योहार कहा जाता है, पौष माह यानी कि जनवरी माह तक अन्न का भंडारण कर लिया जाता है। अतः पौष माह की पूर्णिमा को छेरछेरा त्यौहार मनाया जाता है।
बच्चे ही नहीं बड़े भी इस मौके पर छेरछेरा मांगने जाते हैं, पर अंतर यह रहता है कि वे टोलियां बनाकर डंडा नाच भी करते हैं। दल में मांदर, ढोलक, झांझ, मजीरा बजाने वालों के साथ ही गाने वाले भी रहते हैं। घर-घर व गलियों में गाते हुए वे जाते हैं और उन्हें भी सूपा में धान भरकर दिया जाता है।